जहाँ तेरे पैरों के कँवल गिरा करते थे
हँसे तो दो गालों में भँवर पड़ा करते थे
तेरे कमर के बल पे नदी मुड़ा करती थी
हँसी तेरी सुन सुन के फसल पका करती थी
जहाँ तेरी एडी से धूप उड़ा करती थी
सुना है उस चौखट पे अब शाम रहा करती है
लटों से उलझी लिपटी एक रात हुआ करती थी
कभी कभी तकिये पे वो भी मिला करती है
दिल दर्द का टुकड़ा है, पत्थर की डाली सी है
एक अँधा कुआँ है या एक बंद गली सी है
एक छोटा लम्हा है जो ख़त्म नहीं होता
मैं लाख जलाता हूँ, वो भस्म नहीं होता
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